Friday, 24 January 2014

            कई दूर …. 

तेरी निघाहोसे बिखरते हुये कुछ आसुओको
मेरी पल्कोपे सवारकर, ले जाणा है…
कई दूर…  कई दूर… 


तेरी दबी दबीसी आवाज, अपने आपमे उलझी है  
मेरे ओठोसे पुकारकर, ले जाणा है … 
कई दूर…  कई दूर …. 


तेरी थकी थकी सी सांस, रुकी रुकी सी सांस 
मेरे सांसमें मेह्काकर, ले जाणा है … 
कई  दूर… कई  दुर… 

अपने आपमे खोयी खोयीसी तेरी हर सोच 
मेरी सोचसे मिलाकार, ले जाणा है … 
कई दूर … कई  दुर… 

तेरे तुटे हुये, साथ छुटे हुये, हर लम्हो को 
मेरे लम्होके साथ जोडकर, ले जाणा है … 
कई दुर… कई दूर … 

तेरी बुझी बुझिसी, रुठी रुठी सी दुनिया को 
मेरे जन्नत ए जहासे रुबरुकर, ले जाणा है … 
कई दूर… कई दूर …. 

-प्रवीण बाबूलाल हटकर  

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