कई दूर ….
मेरी पल्कोपे सवारकर, ले जाणा है…
कई दूर… कई दूर…
तेरी दबी दबीसी आवाज, अपने आपमे उलझी है
मेरे ओठोसे पुकारकर, ले जाणा है …
कई दूर… कई दूर ….
तेरी थकी थकी सी सांस, रुकी रुकी सी सांस
मेरे सांसमें मेह्काकर, ले जाणा है …
कई दूर… कई दुर…
अपने आपमे खोयी खोयीसी तेरी हर सोच
मेरी सोचसे मिलाकार, ले जाणा है …
कई दूर … कई दुर…
तेरे तुटे हुये, साथ छुटे हुये, हर लम्हो को
मेरे लम्होके साथ जोडकर, ले जाणा है …
कई दुर… कई दूर …
तेरी बुझी बुझिसी, रुठी रुठी सी दुनिया को
मेरे जन्नत ए जहासे रुबरुकर, ले जाणा है …
कई दूर… कई दूर ….
-प्रवीण बाबूलाल हटकर
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