Monday, 2 September 2013

सोच…

अपनेही आपसे परेशान
होकर मै चल पडा …
 रबसे लढने के लियॆ
मनमे इरादा पक्काकर
मै रब के दरबार पोहचा
खूब लढा, डाटा ओर पुच्छा
 ऐ  रब…
इस जहा मै
मुझेही अकेला क्यू बनाया
एक दोस्त के बिना मेरी जिंदगी
अधुरी है परेशान हे खुद्सेही उलझी है
 मै सोचते सोचते अकेला गिर जाता हु
हर सोच मेरी अपने आपमे गुमशुदा हो जाती है
हर सोच मे मुझे मेरे दोस्त कि कमी ढल जाती है
ये सोच सोच कर मेरी सोच अकेलेमे काप उठती है
अब ये सोच मन के उठते ज्वालामुखी के साथ
ऐ  रब …तुझसे सवाल पुच्छ रहा  है …
गर नही बता सकते हो मुझे दोस्त न मिलने की वजह
तो मै ईसी सोच मे तडप तडप कर मर जाऊंगा …
 तभी एक आकाशवानी हुयी
मूर्ख इसमे परेशान होणे की  क्या बात है …
मैने तो आपको दोस्त दिया है …
ओ रोज आपसे गपशप करता है
आपकी परेशानी से लढता है
ओर ओ दुसरी कोई नही आपकेही अंदर
अपनेही आपसे उलझी हुई आपकी "सोच" है
आपकी एक सही सोच आपका जीवन बदल सकती है
एक सच्चा साथी, एक सच्चा दोस्त आपकी सही सोच है  …

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