Friday, 27 April 2012

       अभंग...
मज मिळालेला! मी दिला तुजला!
मान व आलेला! अपमान!!


तू हि द्यावे त्याला! हक्काने वारसा!
दावूनी आरसा! सत्यप्रिय!!

मज होती माझ्या! हक्काची चप्पल!
फाटक्यात सल! जोपासित!!

मखमली काटे! पायात चुंबीती!
जखमा हसती! मलमांत !!

वडील बोलले! आहे कलयुग!
सत्यार्थचा भोग!  हवा त्यासी!!

पण...तू नकोच! चढवू हा भोग!
अघोरी हा रोग! हिंस्र आहे!!

असत्याची पूजा! कलयुगी राजा!
प्रसन्न सी प्रजा! अनैतिक!!

सत्याचा विनाश! कलयुगी मंत्र!
कलयुगी तंत्र! असत्याचे!!

मी लढलो लाख! शेवटपर्यंत!
ना लावलेय जंत! कलयुगी!!

सत्याचेच जाते! आहे दळलेले!
नाही भरळले! असत्यास!!


   
पुढे उद्गारले! कष्टाची भाकर!
करुनी आदर! कमवावी!!

मान नको देऊ! जो असत्य प्रिय!
मान त्यासी देय! जो सत्यार्थी!!


सत्यार्थ मार्गाचा! करुनी स्वीकार!
आचार विचार! ठेव योग्य!!
 
 मी देतोय तुला! अनमोल दीक्षा!
ना समज भिक्षा! लाचारीची!!
 
आज किवा उद्या! सत्य हे जिंकेल!
असत्य फसेल! त्याच्या डावी!!

प्रविनी सत्यार्थ! वेळ ठरवितो!
सत्य घडवितो! काळांतरी!!


             -प्रवीण(डेबुजी) हटकर.



Thursday, 26 April 2012

विश्वास विश्वास! घातकी विश्वास!
 करिती प्रवास! जवळच्या!!

तो माझी सावली! छाती ठोक बोले!
तो माझाच बोले! भाऊ-बंध!!

व्यवहार होता! धूर्त पणा झाला!
भावानेच केला! घात त्याचा!!

आता ओरडतो! घात झाला घात!
आपल्याने घात! केला आहे!!

मी तर वागलो! साधा भोळा तया!
नाही आली माया! आपल्याची!

विश्वास ठेवला! आपले म्हणून!
माझाच करून! व्यवहार!!

विश्वास वेगळा! व्यवहार दुजा!
सल्ला घे माझा! माणसा तू!

विश्वास हा कर! तूच स्वतावर!
नि दुसर्यावर! तू ठरव!!

व्यवहार कर! तू कुणा सोबत!
हाती तू ठेवत! सूत्र सारे!!

आहे दिलदार! तू हे लाख खरे!
व्यवहार पुरे! ना होयील!!

व्यवहार होतो! समान बाजूनी!
दोघांनी राखुनी! लक्ष त्यात!!

मी आहेच साव! चारीगाव नाव!
द्या मजला भाव! मूर्ख वाणी!!

पैसा तिथे लाव! जिथे योग्य वाव!
उगाचच राव! बनू नको!!

विश्वास सांगुनी! कार्य नको लादू!
संधी नको साधू! फुकटची!!

डोळ्यासी लावूनी! विश्वासाची पट्टी!
अंधारात भट्टी! चालू नको!!

विश्वास असावा! ना अंधविश्वास!
सुकर प्रवास! होयील हो!!

व्यवहार नाच! दुजे बोल माझे!
सूत्र ठेवा राजे! यश तुझे!!

प्रवीण होवुनी! व्यवहार कर!
घे यशोशिखर! विश्वासाने!!

-प्रवीण(डेबुजी) हटकर. 

Wednesday, 25 April 2012

           अभंग...
कृषिमय भारत!  निसर्गमय सार!
 जगासी आधार! लाभलेला!!

निसर्गिक वैभव! निसर्गाचा प्रभाव!
न जाणले अभाव!! आजवर!!

सुखद अनुभव! शांत वातावरण!
उत्तम आवरण! दिव्यत्वाचे!!!!

अलौकिक निसर्ग! अतुल्य से सौदर्य!
 पुजील चंद्र सूर्य! भक्ती भावे!!

निसर्गासी दैवत! जाणलेले आराध्य!
दिव्यसे सानिद्य! पुजलेया!!

जडी-बुटी  करुनी! रोगराई तारली!
वैद्याने जाणलेली! चमत्कृती!!

झाडे नदी पठार! उंच उंच डोंगर!
आच्छादिले अंबर! स्वर्गापरी!!

शोधले निसर्गात! जाणले निसर्गात!
जगले निसर्गात! आम्ही सारे!
 
अतुल्य देशाचा मी! आहे राजकुमार!
करुनिया आभार! निसर्गाचा!!

यथार्थ परमार्थ! धर्म मर्म कर्मार्थ!
निसर्गिक सामर्थ्य! धन्य धन्य!!

जीवन मरणासी! मिळे येथेच माती!
अनेक प्राणी जाती! भेद नसे!!

प्रवीण हि नमतो! निसर्गा जो जाणतो!
निसर्गासी पुजतो! मनोभावे!!
 
निसर्ग झाला बाप! निसर्ग झाली आई!
प्रवीण निसर्गाई! गावूनिया!!

-प्रवीण(हटकर.  




 
 

Tuesday, 24 April 2012

       गणित चुकले...
गणित चुकले! गणित हुकले!
जिथे भागायचे! तिथेच गुणले!!

जोडून पाहिले! गुणून पाहिले
दोन आणि दोन! पाच कसे आले!!
गणित चुकले....गणित हुकले...

आम्ही दोघे आणि! आमचा एकच!
जन-गणनेत! झालेत अनेक!!
 गणित चुकले... गणित हुकले...

आदर्श जाणले! अशोक भाऊनी!
नात्यात दिलेया! आदर्श भाऊनी!!
गणित चुकले... गणित हुकले...
जावयाचा डोळा! आहे संपती ला!
सासर्याचा ओढा! छोटी खपायला!
 गणित चुकले... गणित हुकले...


प्रवीण हटकर.
 
  

Sunday, 22 April 2012

एक चरण...

वेळेला महत्व! ना मी दिले कधी!
पण वेळेपूर्वी! काम केले!!


-प्रवीण(डेबुजी) हटकर.
 

Friday, 20 April 2012

             अभंग...
मी कणात कण! उसविला आहे!
नि शोधले आहे! ब्रम्हांडाला!!

माझ्याच अंतरी! विखुरला आहे!
ग्रासलेला आहे! कणात तो!!

स्व: अस्तित्व शोध! स्वतास जागून!
स्वतात गुंतून! घेत आहे!!

उद्धार करुनी! कण कण झालो!
कणात जाहलो! कण नवा!!

कण हा अखंड! कणास ना खंड!
कणात ब्रम्हांड! जाणुनिया!!

प्रवीण सांगतो! कणाचा विळखा!
अंतरी ओळखा! बा ब्रम्हांडी!!

-प्रवीण(डेबुजी) हटकर.



Wednesday, 18 April 2012

              अभंग...
माणूस निर्मिती! निसर्ग जागृती!
कर्माने प्रकृती!घडावया!!

निर्मिकाने बघा! नेमले माणसा!
स्वच्छंदी आरसा! दाखवाया!

मानवा तू कसा! घडलास बाबा!
का? निर्मात्यास बा! नडलाय!!

प्रश्न प्रश्न प्रश्न! किती तुझे प्रश्न!
निर्मात्यास प्रश्न! पडलाय!!

हावरट तुझा! मुळात स्वभाव!
कायम अभाव! समाधानी!!

घर तुला हवे! मोठे राजेशाही!
मनी अंधाराई! दाटलेली!!

त्याच वाईट हो! नि माझे चांगले!
झोडीत छीदरे! पडो त्याच्या!

झाडांची कटाई! कागद छपाई!
वाटून मिठाई! यशासाठी!

मोठे  कारखाने! दुषीयले जल!
टाकुनिया मल! पाण्यामध्ये!!

शांतीचा संदेश! जगी पोहचाया!
चाचणी कराया! अन्वस्राची!!

मूर्ख मूर्ख मूर्ख! किती मूर्ख पणा!
वाटून घे मना! थोडे तरी!

जगाच्या शांतीस! हिंस्र हत्यार का!
औजार हेच का! शांती साठी!

इतिहास गवा! हे महाभारत!
विनाश विरत! झाला आहे!!

पाहिजे जमीन! तीन गज तुला!
तरी का मोहला! स्वार्थासाठी!!

निर्मात्यास अता! पडलाय प्रश्न!
मानवाने स्वप्न! भंग केले!!

मानव उत्पत्ती! निसर्ग संकट!
प्रश्न हा विकत! निर्मात्यास!

प्रवीण सांगतो! ऐक तू मानवा!
आलाय फतवा! तुझ्या नामे!!

निसर्ग नियम! हिंस्र जेहि  होते!
नामशेष झाले! अता कोण!!

सावध सावध! मानवा सावध!
होयील रे वध! अता तुझा!!

निर्माता निर्मिले! मानवा कर्मिले!
निसर्गा धर्मिले! स्वर्गापरी!!
 -प्रवीण(डेबुजी) हटकर.

Monday, 16 April 2012


             अभंग...

प्रेम समजाया! प्रेमात रंगाया!
प्रेमात जगाया! 'कृष्ण' झालो!!

संवेदन मना! वेदना कळाया!
दुखास झेलाया! 'येशू' झालो!!

शांतीचा संदेश! जगी पोहचाया!
मनी रुजवाया! 'बुद्ध' झालो!!

ज्ञान हीच शक्ती! सत्य जाणुनिया!
ज्ञान वाटावया! 'ब्रम्ह' झालो!!

विश्व उमगन्या! विश्व जाणावया!
विश्वात गुंताया! 'कण' झालो!!

माणूस अंतरी! प्रवीण शोधता!
माणूस दिसता! 'देव' झालो!!

प्रवीण (डेबुजी) हटकर.

Saturday, 7 April 2012

अभंग रचना...

प्रत्येक धर्माला! सत्यार्थ कर्माला!
नैतिक मर्माला! मी पुसले!!

धर्म धर्म धर्म! आहे काय धर्म!
कशासाठी वर्ण! पाळलेत!!

धर्म आहे काय! संकल्पना काय!
उद्देश हा काय! सांगा कुणी!!

म्हणे हा अमका! म्हणे हा टमका!
नाहीच ढमका! कुणी बोले!!


मारुनिया हात! डोक्यावर माझ्या!
मीच मूर्ख राज्या! उद्गारलो!!

तेथुनी निघालो! चक्रात बुडाला!
उगाच पडलो! पेचात ह्या!!


विचारांचे चक्र! मेंदूस ग्रासले!
उगाच पुसले! धर्म गीता!!

तेव्हड्यात मागे! आवाज हा आला!
धर्म भिक्षुकाला! द्या मालक!!

"धर्म ध्या धर्म द्या"! कल्याण होयील!
सुकर होतील! मार्ग तुझे!!

खिशातलं नाणं! भिक्षुकास दिले!
आशीर्वाद दिले! खुल्या हाती!!

थोडे पुढे जाता! अचंबित झालो!
देवूनिया आलो! मी धर्माला!!

धर्म उमगला! धर्म हा जाणला!
पैशात जन्माला! धर्म नवा!!

नवीन युगाचा! फक्त एक धर्म!
पैशाचेच सर्व! भक्त झाले!!

"पैसा हाच धर्म"! वाजवूनी टाळ!
जपतोय माल! पैसा! पैसा!!

   -प्रवीण(डेबुजी) हटकर.