अभंग रचना...
प्रत्येक धर्माला! सत्यार्थ कर्माला!
नैतिक मर्माला! मी पुसले!! धर्म धर्म धर्म! आहे काय धर्म!
कशासाठी वर्ण! पाळलेत!!
धर्म आहे काय! संकल्पना काय!
उद्देश हा काय! सांगा कुणी!! म्हणे हा अमका! म्हणे हा टमका!
नाहीच ढमका! कुणी बोले!!
मारुनिया हात! डोक्यावर माझ्या!
मीच मूर्ख राज्या! उद्गारलो!! तेथुनी निघालो! चक्रात बुडाला!
उगाच पडलो! पेचात ह्या!!
विचारांचे चक्र! मेंदूस ग्रासले!
उगाच पुसले! धर्म गीता!! तेव्हड्यात मागे! आवाज हा आला!
धर्म भिक्षुकाला! द्या मालक!!
"धर्म ध्या धर्म द्या"! कल्याण होयील!
सुकर होतील! मार्ग तुझे!! खिशातलं नाणं! भिक्षुकास दिले!
आशीर्वाद दिले! खुल्या हाती!!
थोडे पुढे जाता! अचंबित झालो!
देवूनिया आलो! मी धर्माला!! धर्म उमगला! धर्म हा जाणला!
पैशात जन्माला! धर्म नवा!!
नवीन युगाचा! फक्त एक धर्म!
पैशाचेच सर्व! भक्त झाले!! "पैसा हाच धर्म"! वाजवूनी टाळ!
जपतोय माल! पैसा! पैसा!!
-प्रवीण(डेबुजी) हटकर.
प्रत्येक धर्माला! सत्यार्थ कर्माला!
नैतिक मर्माला! मी पुसले!! धर्म धर्म धर्म! आहे काय धर्म!
कशासाठी वर्ण! पाळलेत!!
धर्म आहे काय! संकल्पना काय!
उद्देश हा काय! सांगा कुणी!! म्हणे हा अमका! म्हणे हा टमका!
नाहीच ढमका! कुणी बोले!!
मारुनिया हात! डोक्यावर माझ्या!
मीच मूर्ख राज्या! उद्गारलो!! तेथुनी निघालो! चक्रात बुडाला!
उगाच पडलो! पेचात ह्या!!
विचारांचे चक्र! मेंदूस ग्रासले!
उगाच पुसले! धर्म गीता!! तेव्हड्यात मागे! आवाज हा आला!
धर्म भिक्षुकाला! द्या मालक!!
"धर्म ध्या धर्म द्या"! कल्याण होयील!
सुकर होतील! मार्ग तुझे!! खिशातलं नाणं! भिक्षुकास दिले!
आशीर्वाद दिले! खुल्या हाती!!
थोडे पुढे जाता! अचंबित झालो!
देवूनिया आलो! मी धर्माला!! धर्म उमगला! धर्म हा जाणला!
पैशात जन्माला! धर्म नवा!!
नवीन युगाचा! फक्त एक धर्म!
पैशाचेच सर्व! भक्त झाले!! "पैसा हाच धर्म"! वाजवूनी टाळ!
जपतोय माल! पैसा! पैसा!!
-प्रवीण(डेबुजी) हटकर.
No comments:
Post a Comment