Wednesday, 18 June 2014

                                                  … आय लव … रेनी सिझन  …


मेरा जीवन घडीसे रु-ब-रु होकर काटो को सम्मान देते हुवे, जिना सिख लिया था.  बेजान  बेबस और बेवजह के इस चक्रविव्ह मे फसे अभिमन्यू कि भाती लग रहा था. दिन-रात, माह-वर्ष आते थे,जाते थे… दिल मे हमेशा एक सवाल उठता था. सुरज पूरबसे पच्छिम की और क्यू जाता है ? क्या इन्हे दुसरी दिशा नही मिली ? प्रारंभ को ! और उसमे ये बारिश… उफ़्फ़ इतनी बारीश क्यू .… किचड हि किचड … परेशानीही परेशानी ….
दोस्त एक राज कि बात कहु… आय हेट…  रेनी सिझन !!

अभी बारीश का मौसम शुरू हुआ था. कॉलेज कि और निकल पडा, उसी वक्त ११ बजे मेघराजाने आसमामे काले-काले बादलोकि सेना बुलवाई , बीच बीच मे बिजलिके चमकसे, आवाजसे मुझे सेनापती चेतावणी दे रहा था. जाओ अपने सुरक्षित स्थल पर जाओ , कुछ ऐसेही इशारा हो रहा था, शायद… मे तो अपने जिद्द पर अडा रहा, मै निडर होकार, उन्हे अनदेखा कर अपनी लक्ष कि और चलता रहा. ठीक अर्जुन को पंच्छी की आंख दिखी उसी तरह … मै चलता रहा… सच्चे यौद्द्धा कि तऱ्ह …      अचानक तुफान का आगाज … . बारीश कि बुन्दो का तीर कमान कि तरह वर्षाव…  मेरे अंग- कांधोको हवाओ को चिरता हुआ बेकाबू बरस रहा था.
मैने बचाव के लिये बडे पिपल पेड का सहारा लिया.  मै भिगे हुये बालोको सेहलाते हुये बारिश को घुस्सेसे तांक रहा था. शायद रास्तेपे गिरते हुये बुंदे हाती-घोडे का अजब खेळ दिखाकर अपनी विजय का जशन  मना रहे हो, ऐसे दिखा रहे थे.
और तभी एक स्कुटी आकार पाणी के गड्डेमे फस गयी. ध्यान से देखा तो कोई लडकी थी. गाडी को निकालने कि नाकाम कोशिश चल रही थी. उसका धुंदलासा चेहरा दिख रहा था. उसने सहायता की नजर से मेरी और तांका पर आवाज ना दे पायी. आखीर मैने फ़ैसला किया उसकि सहायता करणे का. मेने ब्याग को पेड के पास रखा, कपडोकी पर्वा छोड गाडी निकालने लगा बिना उसे बात किये. अब मै भी बारिश मे पुरा भिग चुका था. बडे मुश्कीलसे गाडी को निकाला और उसे देखे बगेर वहा से निकल पेड कि और आया.

गाडी को वह रेस कर कुछ केहना चाहती थी पर मै  अपने भिगे कपडो को और बालो को सवारणे मे लगा था. बारिश शुरू थी . वह  गाडीसे उतरी, मेरे ओर आणे लगी. मेरी नजर से नजर तांकते स्कार्प निकालते हुवे मुझे कहा थ्यांक्स (thanks)  प्रिन्स शुक्रिया मै आप कि आभारी हु. उसे देखते हि मेरे होश उड गये. क्योकी ओ मेरी क्लासमेट अवनी थी. जिसके साथ बात करणे के लिये मै  कयी सालोसे तरस रहा था. ओ आज इस तरह ऐसे मेरे सामने होंगी ये सोचा नही था. बारिश कि तरह हमारी बाते शुरू रही. कॉलेज कि पुराणी नयी बाते . हंसी मजाक के किस्से रंग लाये. हम दोनो पुरी तरह खुल गये थे ठीक आसमा मे फैले इंद्रधनू के भाती.
बातो बातो मे कब बारिश रुकी पता भी न चला . फिरसे एक बार अवनी ने आभार व्यक्त किये और मैने कहा
कूछ फिल्मी अंदाज मे … अवनी नो थ्यांक्स नो सॉरी …" ओ मुस्कुरा रही थी और मै उसे देख" . दोनो  वहासे निकलने लगे, उसने पुछा प्रिन्स कहा जा रहे हो.  मैने कहा कॉलेज … उसने कहा चलो वहांतक छोड देती हू . मेरे ना कहनेसे पेहले उसने कहा दोस्त कहा है तो चलना हि होगा. मैने भी ना नही  कहा. तबसे अबतक… शॉपिंग हो, फिल्म हो स्टडी हो  पिकेनिक या पहली बारिश मै  भिगने का मजा हो हम साथ साथ हि रहते है . दोस्ती के रास्ते मे हम एक साथी कि  तरह चल पडे है . ये सब हासिल हुआ  अन्चाही बारीश के वजहसे  … कॉझ … आफ्टर ओहर ओल … आय लव … रेनी सिझन.


 -प्रवीण बाबूलाल हटकर
(add) एड/सेल्स (ऐक्झीकेटीव)
अकोला
मो : ८३९०९०३८१७



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