Friday, 28 February 2014

मराठी मराठी ! माउली मराठी !


मराठीच आई ! जणू विठलाई  !
भाषा नवलाई ! महाराष्ट्रा !!

आम्हास मराठी ! आहे भू- अंबर !
विजयी गजर ! स्वराज्याचा !!

मराठी जिजाई ! मराठी रमाई !
जन्म देती आई ! बा… मराठी !!

मराठी ही भाषा ! बोलण्यास गोड !
अंकुरती मोड ! त्या परिस !!

लोखंडाचे सोने ! करितो परिस !
भाषेत परिस ! हो ! मराठी !!

बोलाल तशी ती ! वळते मराठी !
बा… आहे मराठी ! लवचिक !!

जाणाल जेव्हडी ! बा… तेव्हडी खोल !
भावना सखोल ! भाषेत या !!

मराठीची जान ! मराठीचा मान !
आहे अभिमान ! मराठीचा !!

कोहिनूर जसा ! आहे हिर्यांमध्ये !
तशी भाष्यांमध्ये ! बा… मराठी !!

नसानसात हि ! रगारगात हि !
श्वासाश्वासात हि ! भिनलेली !!

रंगतो दंगतो ! जागतो जाणतो !
बा… आम्ही  जगतो ! मराठीत !!

ना झुकेल कधी ! मराठी पगडी !
उभारून गुडी ! अंतरित !!

मराठी भाषेच ! जया ज्ञान आहे !
तै सन्मान आहे ! मराठीचा !!

मराठी मराठी ! माउली मराठी !
होऊ या मराठी ! एकरूप !!
(अभंग … )
-प्रवीण बाबूलाल हटकर


Tuesday, 25 February 2014

 …….     मथळा  …….

रंगण्यासाठी मी आलो, दंगण्यासाठी मी आलो
मैफिलीत मने या, यारो , जिंकण्यासाठी मी आलो … 

-प्रवीण बाबूलाल हटकर






Monday, 17 February 2014

 कार्याविना शून्य…

कार्याविना शून्य ! कीर्ती तुझी आहे !
कीर्ती तुझी आहे ! बा… कार्यार्थी !!

कार्याविना गती ! कार्याविना शक्ती !
कार्याविना युक्ती ! व्यर्थ आहे !!

बा… तुझी ओळख ! सगुण निर्गुण !
बा… कार्य प्रमाण ! मापदंडे !!

हिटलर क्रूर ! बा… कृष्ण प्रेमळ !
एशु तळमळ ! बा… कार्यार्थी !!

जगी दिसे कार्य ! तो कार्यार्थी आहे !
क्रियाशील आहे ! खऱ्या अर्थी !!

शिवबा स्वराज्य ! बा… भीम घटना !
फुले शिक्षण ना ! कार्याविना !!

तुकाराम भक्ती ! हो गाडगे बाबा !
जनजागृती बा… ! कार्यामुळे !!

कार्य प्राप्तीसाठी ! कार्यशील व्हा !
गतिमान व्हा ! बा… कार्यार्थी  !! 

कार्याविना दिन ! माणसा तू आहे !
बा… कुबेर आहे ! जो कार्यार्थी !!

सद्कार्य उद्देश ! कीर्ती उचावेल !
कीर्ती खालावेल !कु- कार्यार्थी !!
(अभंग … )
-प्रवीण बाबूलाल हटकर 

Saturday, 15 February 2014

कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

धूप के पीछे छुपे छाव से 
शहरोसे कोसोदूर गाव से 
पाणी मे तेरती नाव से 
मंजिलसे रुबरु थके पाव से 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 


गोरी के लेहराते दुपट्टे से 
ओठो मे दबी मुस्कुराहट से 
बिंदिया के  टीमटीमाहट से 
घुगरुके गुंजे छनछनाहट से 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

पर्वतोसे गुनगुनाते झरनोसे 
सुरजकी चमचमाते किरनोसे 
हातोकि खनखनाते कंगनोसे 
साथी से हात मिलाते अपनोसे 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

-प्रवीण बाबूलाल हटकर  

Thursday, 13 February 2014

(ए मेरी जान ए जहा…  )


ए मेरी जान ए जहा
तू क्यू दूर दूर सी है,
तेरे बगेर मेरी दुनिया 
हाय! चूर चूर सी है  ….


खडा हु राहोमे  तेरी मै
तेरा हमसफर बनके,
तू फुल है चमन का
मै तेरी खुशबू बनके
जानके भी अंजान होकर
क्यू बेखबर सी है
(ए मेरी जान ए जहा …. )

तू धूप  तू छाव
तू दोपेहर तू शाम है
तूही ईश्वर तूही अल्हा
तुही मेरे चारोधाम है
तेरे बगेर मेरी हर सुबह
हाय ! अंधेर सी है ….
(ए मेरी जान ए जहा…  )

तेरे हर गममे आवुंगा मै
मुस्कुराहाट लेकर
बुझे दिल के चिरागो मे
जरासी रोशनी लेकर
ऐ मोहिनी! तू खामोश क्यू ,
क्यू मजबूर सी है ….
(ए मेरी जान ए जहा…  )

-प्रवीण बाबूलाल हटकर 

Wednesday, 12 February 2014

ये जिंदगी तू चल, चल  मेरे संग … 

ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग
दुनियाके दिखलाऊ कई तुझे रंग … 

हर कोई जप रहा है 
यहा स्वार्थ कि माला 

इमांदारी को निलामकर 
सच्चाई पे थोपे काला . 
(ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

इन हवस भरी नजरोसे 
बेटी कैसे बचेंगी यारा,

ये सोच सोच के भैया 
उसे पेठ मे मार डाला . 
(ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

ये दोस्त तू ना डर 
ना डर दुनियाके दस्तूर से… 

जो डरा ओ मरा, 
जो झुका ओ कटा 
ये यहा कि रीत है,

शिकार होनेसे पहेले
शिकार करलो तुम 
हार के आगे जीत है… 
  (ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

-प्रवीण बाबूलाल हटकर 


Saturday, 8 February 2014

शायद …

तेरी यांदोके रेगीस्तान मे
चल पडा हु, 
अपनेही सोच के सहारे 
गिरते, लडखदाते, फिर संभालते कदमोसे
तेरी ओझलसे अपनेआप मे गुमनामसे साये के पिच्छे पिच्च्छे 
चल रहा हु … 
शायद अंजान हु मै 
अंजाम ए दासतासे 
क्या मै भूल गया हु 
अपनेही अस्तित्व को 
जो कभी अपनेहिआप से 
रुबरु था आपसे मिलने के पेहले 
जी रहा था, बस जिने के लिये 
ओर आज आपसे होकेभी नही हु मै उसमे कही  
ऐ पेहली, जी रहा हु मै मर मर के 
अब तो ऐसे लग रहा है 
के मै मर जाऊ 
शायद हा शायद … 
तेरे बगेर मै  मर के जी लु जरा… 

-प्रवीण बाबूलाल हटकर 

Friday, 7 February 2014

(ये सुबहकी पेहली किरण …. )


ये सुबहकी पेहली किरण
आकर तू मिल मुझे 
मेरी रुह्से गुफ्तगू कर
तेरी बाहोमे लिपट मुझे … 

तेरी नरम नरम धुप 
मेरी सांसोके मेह्काये 
मचले, बदले हुये दिलमे 
बेहकि बेहकि हलचल सुनाये … 
(ये सुबहकी पेहली किरण …. )

ये किरण तू आं, आ जा जरा 
मेरी सोचसे सोच मिला ले जरा 
तेरे बगेर मेरी सोच अंधेरसी है 
तू आकर रोशनीसा कर जा जरा …. 
(ये सुबहकी पेहली किरण …. )

-प्रवीण बाबूलाल हटकर