Thursday, 13 February 2014

(ए मेरी जान ए जहा…  )


ए मेरी जान ए जहा
तू क्यू दूर दूर सी है,
तेरे बगेर मेरी दुनिया 
हाय! चूर चूर सी है  ….


खडा हु राहोमे  तेरी मै
तेरा हमसफर बनके,
तू फुल है चमन का
मै तेरी खुशबू बनके
जानके भी अंजान होकर
क्यू बेखबर सी है
(ए मेरी जान ए जहा …. )

तू धूप  तू छाव
तू दोपेहर तू शाम है
तूही ईश्वर तूही अल्हा
तुही मेरे चारोधाम है
तेरे बगेर मेरी हर सुबह
हाय ! अंधेर सी है ….
(ए मेरी जान ए जहा…  )

तेरे हर गममे आवुंगा मै
मुस्कुराहाट लेकर
बुझे दिल के चिरागो मे
जरासी रोशनी लेकर
ऐ मोहिनी! तू खामोश क्यू ,
क्यू मजबूर सी है ….
(ए मेरी जान ए जहा…  )

-प्रवीण बाबूलाल हटकर 

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