Saturday, 15 February 2014

कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

धूप के पीछे छुपे छाव से 
शहरोसे कोसोदूर गाव से 
पाणी मे तेरती नाव से 
मंजिलसे रुबरु थके पाव से 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 


गोरी के लेहराते दुपट्टे से 
ओठो मे दबी मुस्कुराहट से 
बिंदिया के  टीमटीमाहट से 
घुगरुके गुंजे छनछनाहट से 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

पर्वतोसे गुनगुनाते झरनोसे 
सुरजकी चमचमाते किरनोसे 
हातोकि खनखनाते कंगनोसे 
साथी से हात मिलाते अपनोसे 
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है 

-प्रवीण बाबूलाल हटकर  

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