कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है
धूप के पीछे छुपे छाव से
शहरोसे कोसोदूर गाव से
पाणी मे तेरती नाव से
मंजिलसे रुबरु थके पाव से
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है
गोरी के लेहराते दुपट्टे से
ओठो मे दबी मुस्कुराहट से
बिंदिया के टीमटीमाहट से
घुगरुके गुंजे छनछनाहट से
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है
पर्वतोसे गुनगुनाते झरनोसे
सुरजकी चमचमाते किरनोसे
हातोकि खनखनाते कंगनोसे
साथी से हात मिलाते अपनोसे
कुछ तो सुना है … हा कुछ तो सुना है
-प्रवीण बाबूलाल हटकर
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