Wednesday, 12 February 2014

ये जिंदगी तू चल, चल  मेरे संग … 

ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग
दुनियाके दिखलाऊ कई तुझे रंग … 

हर कोई जप रहा है 
यहा स्वार्थ कि माला 

इमांदारी को निलामकर 
सच्चाई पे थोपे काला . 
(ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

इन हवस भरी नजरोसे 
बेटी कैसे बचेंगी यारा,

ये सोच सोच के भैया 
उसे पेठ मे मार डाला . 
(ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

ये दोस्त तू ना डर 
ना डर दुनियाके दस्तूर से… 

जो डरा ओ मरा, 
जो झुका ओ कटा 
ये यहा कि रीत है,

शिकार होनेसे पहेले
शिकार करलो तुम 
हार के आगे जीत है… 
  (ये जिंदगी तू चल चल  मेरे संग …)

-प्रवीण बाबूलाल हटकर 


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