ये जिंदगी तू चल, चल मेरे संग …
दुनियाके दिखलाऊ कई तुझे रंग …
हर कोई जप रहा है
यहा स्वार्थ कि माला
इमांदारी को निलामकर
सच्चाई पे थोपे काला .
(ये जिंदगी तू चल चल मेरे संग …)
इन हवस भरी नजरोसे
बेटी कैसे बचेंगी यारा,
ये सोच सोच के भैया
उसे पेठ मे मार डाला .
(ये जिंदगी तू चल चल मेरे संग …)
ये दोस्त तू ना डर
ना डर दुनियाके दस्तूर से…
जो डरा ओ मरा,
जो झुका ओ कटा
ये यहा कि रीत है,
शिकार होनेसे पहेले
शिकार करलो तुम
हार के आगे जीत है…
(ये जिंदगी तू चल चल मेरे संग …)
-प्रवीण बाबूलाल हटकर
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